नर और नारी

 

दासता 

 

    जब तक नारियां अपने-आपको मुक्त न करें तब तक कोई कानून उन्हें मुक्त नहीं कर सकता ।

 

    उन्हें जो चीजें दास बनाती हैं वे हैं :

    १. नर और उसके बल के प्रति आकर्षण,

    २. गृहस्थ-जीवन और उससे मिलने वाली निश्चिन्तता की कामना,

    ३. मातृत्व के लिए आसक्ति

    अगर वे इन तीन दासताओं से मुक्त हो जायें तो वे सचमुच पुरुषों के बराबर होंगी ।

 

    पुरुषों में भी तीन दासताएं होती हैं :

    १. आधिपत्य की भावना, शक्ति और अपनी प्रधानता के लिए आसक्ति,

    २. स्त्रियों के साथ लैंगिक सम्बन्ध की कामना,

    ३. विवाहित जीवन की छोटी-मोटी सुख-सुविधाओं के लिए आसक्ति

    अगर वे इन तीन दासताओं से छुटकारा पा लें तो वे सचमुच स्त्रियों के बराबर हो सकते हैं ।

१ अगस्त, १९५१

 

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    स्त्रियां प्राणिक और भौतिक चेतना के साथ पुरुषों की अपेक्षा अधिक बंधी हुई नहीं होतीं । इसके विपरीत, चूंकि उनमें पुरुषों का अक्खड़ मानसिक मिथ्याभिमान अक्सर नहीं होता अत: उनके लिए अपने चैत्य पुरुष को खोजना और उसे अपना पथ-प्रदर्शन करने देना ज्यादा आसान होता है ।

 

    सामान्यत: वे ऐसे मानसिक रूप में सचेतन नहीं होतीं जिसे शब्दों में व्यक्त किया जा सके, लेकिन वे अपनी अनुभूतियों में सचेतन होती हैं और उनमें जो सर्वोत्तम होती हैं वे अपने कर्मों में भी सचेतन होती हैं ।

 

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    आध्यात्मिक जीवन में बहुत-सी विलक्षण नारियां हो चुकी हैं । लेकिन नारियों का एक पक्ष यह है कि उनका मानसिक रूप देने या बौद्धिक रूप से अभिव्यक्त करने की अपेक्षा कर्म की ओर ज्यादा रुझान होता है । इसीलिए बहुत ही कम स्त्रियों ने अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियां लिपिबद्ध की हैं और फलत: वे अज्ञात रही हैं ।

 

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    सचमुच अच्छी पत्नी होना लगभग उतना ही कठिन हे जितना सच्चा शिष्य होना ।

 

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    यह विचार कि स्त्रियों को पुरुषों के लिए पकाना चाहिये, मेरे सिद्धान्तों के विपरीत है । क्या वे गुलाम हैं ?

 

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